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.: 8/1/13 - 9/1/13
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बुधवार, 28 अगस्त 2013. पूजा जिस जिस को मैंने. पूजा जिस जिस को मैंने, परवरदिगार की तरह,. हर उस शख्स ने मुझे देखा, गुनेहगार की तरह. दौलत भी क्या शय है, तब मालूम हुआ मुझको. जब अदालत गवाह सब बिक गए, अखबार की तरह. रोज़ नए वादे करना, और रोज़ मुकर जाना. तुम भी पेश आ रहे हो, सरकार की तरह. हर बार तुमसे उम्मीद, लगाता रहा ये दिल,. और तुम तोड़ती रही उम्मीद, हर बार की तरह. तेरे ग़म की स्याही से, जब जब कुछ लिखा हमने. हर नज़र में आ गए हम, इश्तेहार की तरह . कवि प्रभात "परवाना". रचनाकार Prabhat PARWANA. मोहन तì...
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.: 11/1/14 - 12/1/14
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सोमवार, 17 नवंबर 2014. बेटी को ना गर्भ में मारो. बेटी नारायण सेवा है, बेटी पुण्यो का मेवा है. सावन भादो मॉस है बेटी, जीवन का आभास है बेटी. बेटी नभ का पता है, बेटी आशा है, लता है. बेटी वंदना है, पूजा है , बेटी दौड़ती उषा है. बिन बेटी ये दुनिया मौन है, बेटी में हीमैरी कॉम है. बेटी कुल का मान बढ़ाती, बेटी वायुयान उड़ाती. बेटी रामायण गीता है, बेटी में एक युग जीता है. त्याग तपस्या भाव है बेटी, एक मधुर सा राग है बेटी. कवि प्रभात "परवाना". वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com. रचनाकार Prabhat PARWANA. सदस्...
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.: 5/1/15 - 6/1/15
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बुधवार, 6 मई 2015. परवाने की मोहब्बत नहीं देखी. तुमने दिल की सूनी, सरहद नहीं देखी. होंठो पर कैद है जो, गफलत नहीं देखी. मेरे महबूब से सामना, नहीं हुआ तेरा. मतलब तूने अब तक, क़यामत नहीं देखी . लकीरे तक मिटा दी मैंने, तेरे नाम की. तूने प्यार देखा है, मेरी नफरत नहीं देखी. फर्श से अर्श तक सब कुछ, उसका हो गया. जिसमे सफर में पैर की, थकावट नहीं देखी. मुहं पे राम बगल में, छुरी रखते है साहब. आपने अभी शरीफो की, शराफत नहीं देखी. कवि प्रभात "परवाना". रचनाकार Prabhat PARWANA. 1 टिप्पणी:. नई पोस्ट. Promote Your Page Too.
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.: 4/1/15 - 5/1/15
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सोमवार, 6 अप्रैल 2015. जानता हूँ बिखर जाऊंगा. इंसा है, और खुदा बनने की, चाहत करता है. नादान है, ऊपरी उसूलों से, शरारत करता है. जिसको हमने सिखाया, लब खोलने का हुनर. जरा बोलने लगा तो, हमसे बगावत करता है. आखिर इस शहर को, क्या हो गया है हुज़ूर. यहाँ ज़िंदा शख्स मुर्दो से, शिकायत करता है. सियासत ने भी दंगो का, नुस्खा दे दिया. ये पूजा करता है, और ये इबादत करता है. जानता हूँ बिखर जाऊंगा, एक ना एक दिन. फर्क ही क्या है तुझमे, और मुझमे बता दे. कवि प्रभात "परवाना". रचनाकार Prabhat PARWANA. नई पोस्ट. एक कवि क...
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.: 6/1/15 - 7/1/15
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शुक्रवार, 12 जून 2015. कुछ ना कुछ तो अंदर टूटा जरूर है. आँखे बता रही है, कुछ हुआ जरूर है. कुछ ना कुछ तो अंदर, टूटा जरूर है. गिरते गिरते कई बार, संभला हूँ मैं. मेरे साथ किसी की, दुआ जरूर है. कल शब से ही, महकने लगा हूँ मैं. ख्वाब में सही, उसने छुआ जरूर है. खता करने से पहले, रोक दिया किसने. मेरे जहन में बैठा, कोई खुदा जरूर है. जिस्म क्या रूह भी, खुद की नही रहती. इश्क़ किया हो न हो, तजुर्बा जरूर है. कवि प्रभात "परवाना". वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com. रचनाकार Prabhat PARWANA. नई पोस्ट. नशे म...
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.: 2/1/14 - 3/1/14
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बुधवार, 5 फ़रवरी 2014. आफ़ताब कौन देगा? उसके दर पर नकाब, कौन देगा? तेरे कर्मो का हिसाब, कौन देगा? किसी पर सितम से पहले, सोच लेना. कल उस खुद को जवाब, कौन देगा? आइना देखकर, इतराने वाले. ढलती उम्र में शबाब, कौन देगा? ज़रा रौशनी में, ढूंढ लूँगा मंज़िल. इस जुगनू को आफ़ताब, कौन देगा? आखिरी दहलीज पर बेटे, मुहँ मोड़ गए. अब उसकी चिता को आग, कौन देगा? फिर एक दंगा चाहती है, सियासत. वरना दैरो-हरम में शराब, कौन देगा? कवि प्रभात "परवाना". वेबसाईट का पता:- www.prabhatparwana.com. रचनाकार Prabhat PARWANA. नई पोस्ट. नशे...
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.: 12/1/13 - 1/1/14
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मंगलवार, 3 दिसंबर 2013. दोहरी ज़ुबान नहीं आती .……. लाख कोशिश करो, मुस्कान नहीं आती. चली जाए जिस्म से, फिर जान नहीं आती. ज़रा सी बात में, दिल निकाल कर रख दिया. सच, मुझे इंसान की, पहचान नहीं आती.……. बहेलिये मुझे मार, मगर उसे बक्श दे. परिंदा छोटा है, अभी उड़ान नहीं आती .……. तलवे चाट सकते तो, आगे बढ़ गए होते. कमी ये है, हमें दोहरी ज़ुबान नहीं आती .……. ज़िंदा का लहू, मुर्दे का कफ़न तक खा गयी. ये सियासी हवस, कभी लगाम नहीं आती.……. कवि प्रभात "परवाना". रचनाकार Prabhat PARWANA. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. नशे मे...
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.: 6/1/14 - 7/1/14
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सोमवार, 30 जून 2014. जरूरी तो नहीं. इस दस्तक पर, मेहमां भी हो सकता है. हर बार ही हवा हो, जरूरी तो नहीं. कसूर हालात का भी, हो सकता है. हर शख्स बेवफा हो, जरूरी तो नहीं. मेरे हमदर्दो में ही, बैठा है कातिल. हर लब पे दुआ हो, जरूरी तो नहीं. लाश पे जख्म-ए-मोहब्बत, है साहब. मेरा क़त्ल ही हुआ हो, जरूरी तो नहीं. उसका एक एक सितम, लाइलाज निकला. हर जख्म की दवा हो, जरूरी तो नहीं. माँ की आँखे भी पढ़ कर, देखिये जनाब. कवि प्रभात "परवाना". वेबसाईट का पता:-. रचनाकार Prabhat PARWANA. इसे ईमेल करें. 1 टिप्पणी:. नशे भ...
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.: 2/1/15 - 3/1/15
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शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015. रहबर बना लिया. कांटो को सजा बिछा कर, बिस्तर बना लिया. लो हमने भी शहर-ए-ग़म में, घर बना लिया. दरिया चिढ़ाता था जिन जिन, बूंदो को कभी. उन सब बूंदो ने मिलकर, समंदर बना लिया. सबके सब रखते हो ना, संगतराशी का हुनर. लो हमने भी इस दिल को, पत्थर बना लिया. बस तेरे दो आँसुओ से बाज़ी, हार गए वरना. हमने जिसे भी चाहा उसे, मुकद्दर बना लिया. खत-ए-दोस्ती का हर पन्ना, पढ़ लिया साहब. हमने दुश्मनो को अपना, रहबर बना लिया. कवि प्रभात "परवाना". रचनाकार Prabhat PARWANA. इसे ईमेल करें. नई पोस्ट. नशे म...
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