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उत्तमराव क्षीरसागर: March 2014
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. शुक्रवार, 7 मार्च 2014. अंकित हैं तुम्हारी पगध्वनियाँ. मेरी नींद में अंकित हैं तुम्हारी पगध्वनियाँ. यह सत्य नहीं तो कुछ अंश तो है सच का. मैं देख सकता हूँ तुम्हें अपने अवचेतन एकांत में. मुग़ालते से बचने के लिए चेत जाता हूँ. यह तब जाना जब तुम थक चुकी. मैं तंग आ गया हूँ अपनी रफ़्तार से. तुम्हारी ओर समय की तरह. मुसकान सी कोई. अभी तुम्हा...सोचू...
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उत्तमराव क्षीरसागर: June 2012
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. रविवार, 24 जून 2012. लहर थाह लेती है. लहर सागर की ।. सागर अथाह. अथाह जलराशि. लहर ठहर ज़रा,'. पुकार-पुकार हारेंगे. लहर कभी रूकती है क्या! थाह लेती है सागर की. प्रस्तुतकर्ता : उत्तमराव क्षीरसागर Uttamrao Kshirsagar. 0 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. नई पोस्ट. लम्ह...स्&...
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उत्तमराव क्षीरसागर: April 2011
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. रविवार, 17 अप्रैल 2011. एक हाइकू. तपती रेत. दिन भर हँसती. धूप समेत. प्रस्तुतकर्ता : उत्तमराव क्षीरसागर Uttamrao Kshirsagar. 5 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल मेरी कविताएँ. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). सार-सार संसार. एक हाइकू. मेर&#...
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उत्तमराव क्षीरसागर: March 2013
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. गुरुवार, 7 मार्च 2013. सात मार्च. प्रस्तुतकर्ता : उत्तमराव क्षीरसागर Uttamrao Kshirsagar. 0 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. Pinterest पर साझा करें. लेबल तस्वीर. सात मार्च. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). सार-सार संसार. सात मार्च. मेरी ...पि&...
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उत्तमराव क्षीरसागर: March 2011
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. बुधवार, 23 मार्च 2011. आख्यान : समापन किस्त. इट वाज़ ए रिव्वोल्यूशनरी जजमेंट. एक ख़ूबसुरत मछली.राग-रव.खाखा पक्षी की चहक. उम्मीदों की ज़मीं.मुट्ठियों में एक अमूर्त भय, .पलायन. ऐसे कथन जहॉं तेजिंदर. पृ0 123 ). प्रस्तुतकर्ता : उत्तमराव क्षीरसागर Uttamrao Kshirsagar. 1 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! तेजिंदर. नई पोस्ट. अंकित ह&#...आते...
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उत्तमराव क्षीरसागर: October 2012
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. रविवार, 28 अक्तूबर 2012. क़त्ल के बाद. गिलास भर पानी की तरह. पी जाता हूँ अपनी नींद को. आँखें जैसे खाली गिलास. देखता हूँ, एक कमरे की. रोशनी से बाहर का अँधेरा. दूर-दूर तक अँधेरा. अँधेरे में सोया हे जग सारा. खोया-खोया-सा. अपने सुख-चैन में. मुग्ध-तृप्त. भीतर टटोलता हूँ अपने. कुछ मिलता नहीं! अपने भीतर. 2 टिप्पणियाँ. इसे ईमेल करें. अब छूटा क&#...तीर...
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उत्तमराव क्षीरसागर: September 2012
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. शनिवार, 29 सितंबर 2012. जिओ हज़ारों साल. चि. अन्वय क्षीरसागर. जन्मदिन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ! जिओ मेरे लाल. जीवेत् शरद: शतम् * * * * * * * * * *. प्रस्तुतकर्ता : उत्तमराव क्षीरसागर Uttamrao Kshirsagar. 0 टिप्पणियाँ. इस संदेश के लिए लिंक. इसे ईमेल करें. इसे ब्लॉग करें! Twitter पर साझा करें. Facebook पर साझा करें. लेबल अन्वय. फिर भी. इसे...
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उत्तमराव क्षीरसागर: November 2012
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. मंगलवार, 27 नवंबर 2012. और कुछ न था. कल जहाँ. हमने तय की थीं दिशाएँ. अपने-अपने रास्तों की. वहाँ,. जल में तैरती हुई स्मृतियाँ थीं. और कुछ न था. स्मृतियों में. फड़फड़ाती हुई मछलियाँ थीं. और कुछ न था. मछलियों में. भड़कती हुई तृषा थीं. और कुछ न था. तृषा में. किलोले करते हुए मृग थे. और कुछ न था. मृगों में. और कुछ न था. नई पोस्ट. और कुछ न था. तीन...
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उत्तमराव क्षीरसागर: November 2011
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जो आग होना चाहते हैं / सुलगते हैं बरसो / यह जानकर भी / कि राख हो जाएँगे! मुखपृष्ठ. कला दीर्घा : रेखांकन. कला दीर्घा : छायांकन. कला दीर्घा : पेंटिंग्स. शनिवार, 5 नवंबर 2011. आदमी का बच्चा, सबब और भय का अंधा समय. आदमी का बच्चा. आदमी का बच्चा. नहीं भर सकता कुलॉंचें. रँभाती गायों के. नवजात बछड़ों की तरह. अभिशप्त है वह. पैदा होते ही रोने को. आज़ाद औरतें जानती हैं. वाक़ई कितनी आज़ाद हैं वे. भटकते-फटकते शरारती फौवारें. भय का अंधा समय. भय का अंधा समय. धर्म की लाठी लेकर. भय का अंधा समय. नई पोस्ट. मूल...