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अनहद: मार्च 2007
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. गुरुवार, 29 मार्च 2007. धर्म साम्प्रदायिकता और अध्यात्म. मैंने. अधिकांश. व्याख्या. होंगे. प्राचीन. संप्रदाय. अपेक्षित. दांपत्य. प्रयुक्त. आध्यात्म. परिवर्तनशील. विकासशील. प्रत्यास्थ. किन्तु. वर्त्तमान. राजनितिक. संप्रदाय. पर्यायवाची. परिप्रेक्ष्य. मैंने. शास्त्रीय. विशाल सिंह. 2 टिप्पणियां:. इस पोस्ट की अन्यत्र चर्चा. श्रेणी: धर्म. गुरुवार, 22 मार्च 2007. नन्दीग्राम : खेत, सूअर और आदमी. All animals are equal, but some are more equal than others. नारों. क्यों. 2404; कुछ. 2404; ज&...
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अनहद: धर्म साम्प्रदायिकता और अध्यात्म
http://padarth.blogspot.com/2007/03/blog-post_26.html
कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. गुरुवार, 29 मार्च 2007. धर्म साम्प्रदायिकता और अध्यात्म. मैंने. अधिकांश. व्याख्या. होंगे. प्राचीन. संप्रदाय. अपेक्षित. दांपत्य. प्रयुक्त. आध्यात्म. परिवर्तनशील. विकासशील. प्रत्यास्थ. किन्तु. वर्त्तमान. राजनितिक. संप्रदाय. पर्यायवाची. परिप्रेक्ष्य. मैंने. शास्त्रीय. विशाल सिंह. श्रेणी: धर्म. 2 टिप्पणियां:. ने कहा…. 26 मार्च 2007 को 11:23:00 pm IST. विशाल सिंह. ने कहा…. 29 मार्च 2007 को 8:12:00 pm IST. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. मुख्यपृष्ठ.
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अनहद: मई 2007
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. गुरुवार, 31 मई 2007. अब फायर फॉक्स भी हिंदी मित्र. हिन्दी जगत के लिये खुशखबरी, मोज़िला वालों ने आखिर अपने नये संस्करण फॉयरफाक्स-३. में हिन्दी की रेन्डरींग सही कर ली। अभी यह संस्करण उपलब्ध नहीं है, पर डेवलपर वर्जन ग्रैन पैराडिजो अल्फा वन. चलिये आप भी प्रयोग. कर के देख लीजीए।. विशाल सिंह. 15 टिप्पणियां:. इस पोस्ट की अन्यत्र चर्चा. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). ब्लॉग आर्काइव. पथ के साथी. सृजन शिल्पी. अग्नि की खोज. हिन्द-युग्म.
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अनहद: रात
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013. कुछ बीती है तारीख अभी तक इस तरह,. खुशी देख के भी खुश होने से डर लगता है।. भरोसा अंधेरे में नहीं है खुद अपनी नजर का. साये के साथ भी रोशनी का खेल चलता है।. स्याह पहरा सुर्ख रंग पर हर पहर चढ़ता है,. सहर हो तो भी शाम का ही मंजर रहता है।. कट जाए रात, गर सबर चांद के दीदार का हो,. नजर आए तो फिर छिप जाने का डर लगता है।. रात लंबी है, सिर्फ सो के बिता दूँ कैसे? नम आखों में फिर सपने सजा लूँ कैसे? विशाल सिंह. कोई टिप्पणी नहीं:. नई पोस्ट. पथ के साथी.
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अनहद: नन्दीग्राम : खेत, सूअर और आदमी
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. गुरुवार, 22 मार्च 2007. नन्दीग्राम : खेत, सूअर और आदमी. सभी पशु समान हैं किंतु कुछ पशु दूसरों से ज्यादा समान हैं।". All animals are equal, but some are more equal than others. नंदीग्राम के ताजा नरसंहार और पश्चिम बंगाल के औद्योगीकरण पर माकपा के रवैये ने मुझे अंग्रेज लेखक जार्ज. के विश्वप्रसिद्ध उपान्यास " एनिमल. की इन पंक्तियों की याद दिला दी। यह उपन्यास स्टालिन. नारों. क्यों. 2404; कुछ. लोगों. स्वार्थपरकता. क्यों. स्टालिन. साम्यवाद. अत्याचार. द्वारा. व्यवस्था. सूअरो&#...ज्ञ...
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अनहद: फ़रवरी 2007
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. बुधवार, 21 फ़रवरी 2007. मिंगलबॉक्स. क्या आप भी ऑर्कुटियाते हैं, Orkut. खोली गयी है।. कुल मिला कर हमारे आपके लिये एक से ज्यादा विकल्प होने का फायदा ही है।. विशाल सिंह. 1 टिप्पणी:. इस पोस्ट की अन्यत्र चर्चा. श्रेणी: minglebox. नई पोस्ट. पुराने पोस्ट. मुख्यपृष्ठ. सदस्यता लें संदेश (Atom). ब्लॉग आर्काइव. मिंगलबॉक्स. पथ के साथी. सृजन शिल्पी. जया झा की कवितायें. अग्नि की खोज. हिन्द-युग्म. अक्षरग्राम. चिट्ठाचर्चा. विपिन दा चिट्ठा. मेरा परिचय. विशाल सिंह.
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अनहद: फ़रवरी 2013
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. बुधवार, 6 फ़रवरी 2013. जोहते जोहते वो घड़ी आ पड़ी ।. आसमां में है उड़ने चिरइया चली ।. रूत ये रूक के जरा देर रहती खड़ी।. है पहर को भी जाने की जल्दी बड़ी।. सर्द अंधेरों के पहरे सभी तोड़ के. धूप ने लाल चुनरी सजाई तेरी।. सूनी रातों को पीछे तू अब छोड़ दे. सुबह ने आज गायी विदाई तेरी।. रंग सातों किरन के खुद गूँठ के. गगन ने ही है डोली बनाई तेरी।. पवन के संग में तोहे ले जाने को. पालकी दस दिशाओं ने उठाई तेरी।. दो घड़ी दो पहर मन भरमने से क्या. विशाल सिंह. भरोसा अंधेर...साये क...स्य...
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अनहद: अब फायर फॉक्स भी हिंदी मित्र
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. गुरुवार, 31 मई 2007. अब फायर फॉक्स भी हिंदी मित्र. हिन्दी जगत के लिये खुशखबरी, मोज़िला वालों ने आखिर अपने नये संस्करण फॉयरफाक्स-३. में हिन्दी की रेन्डरींग सही कर ली। अभी यह संस्करण उपलब्ध नहीं है, पर डेवलपर वर्जन ग्रैन पैराडिजो अल्फा वन. चलिये आप भी प्रयोग. कर के देख लीजीए।. विशाल सिंह. 15 टिप्पणियां:. संजय बेंगाणी. ने कहा…. बढ़ीया है. 31 मई 2007 को 6:37:00 pm IST. ने कहा…. शुक्रिया जानकारी देने के लिए।. 31 मई 2007 को 8:03:00 pm IST. ने कहा…. 31 मई 2007 को 8:28:00 pm IST. अरे...
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अनहद: सोचता हूँ
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कुछ अपनी, कुछ दुनिया की. सोमवार, 23 अप्रैल 2007. सोचता हूँ. सोचता हूँ, समय से पहले,. ईसा को शूली, सुकरात को विष,. आजाद, गॉधी को गोली,. खुदी, भगत को फांसी क्यों मिली? क्या वे पागल थे? सामान्य स्तर से ऊँचा. या ऊससे नीचा,. सोचना पागलपन ही तो है।. यदि वे जीवन के सामान्य मूल्यों को,. घृणा, ईषर्या, द्वेष, ऊँच-नीच की भावना. को समझ लेते,. तो शायद कुछ दिन और जी लेते।।. विशाल सिंह. 1 टिप्पणी:. ने कहा…. में।. 23 अप्रैल 2007 को 6:38:00 pm IST. एक टिप्पणी भेजें. नई पोस्ट. पुरानी पोस्ट. पथ के साथी.